भारत के दो बड़े मसाला ब्रांड- MDH और एवरेस्ट के उत्पादों को अब नेपाल में भी बैन कर दिया गया है. इससे पहले हॉन्गकॉन्ग और सिंगापुर ने भी ऐसा ही किया था. इनके मसालों में कथित रूप से हानिकारक केमिकल की मात्रा ज्यादा पाई गई है. ऐसे में समझते हैं कि आखिर भारत के मसलाों को लेकर दुनिया को इतनी मिर्ची क्यों लग रही है?
भारत के दो बड़े मसाला ब्रांड पर कई देशों ने बैन लगा दिया है.
पहले हॉन्गकॉन्ग…फिर सिंगापुर…और अब नेपाल. इन तीनों देशों ने भारत की दो बड़ी मसाला कंपनियों- MDH और एवरेस्ट के प्रोडक्ट्स पर बैन लगा दिया है. ये कार्रवाई इनके मसालों में कथित रूप से हानिकारक केमिकल पाए जाने पर की गई है.
सबसे पहले हॉन्गकॉन्ग ने MDH के तीन मसालों- मद्रास करी पाउडर, मिक्स्ड मसाला पाउडर और सांभर मसाला और एवरेस्ट के फिश करी मसाला में एथिलीन ऑक्साइड तय मात्रा से ज्यादा होने का दावा करते हुए इनपर बैन लगा दिया था. इसके बाद सिंगापुर ने भी यही किया. और अब नेपाल ने भी ऐसा किया.
नेपाल के फूड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रवक्ता कृष्ण महाराजन ने न्यूज एजेंसी को बताया कि MDH और एवरेस्ट के मसालों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है. इनके मसालों की बाजार में बिक्री भी लगा दी है.
दुनियाभर में भारतीय मसालों पर विवाद!
दुनियाभर में ज्यादातर मसाले भारत से ही जाते हैं. इनमें भी MDH और एवरेस्ट तो ऐसी कंपनियां हैं, जिनके मसाले घर-घर में हैं. लेकिन अब दोनों ही कंपनियों के उत्पाद जांच के दायरे में हैं.
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, MDH और एवरेस्ट के मसालों की ब्रिटेन, अमेरिका, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में भी जांच शुरू हो सकती है. ब्रिटेन का कहना है कि वो भारत से आने वाले मसालों की जांच और सख्ती से करेगा.
न्यूजीलैंड के फूड सेफ्टी रेगुलेटर के डिप्टी डायरेक्टर जनरल जैनी बिशप ने बताया कि एथिलीन ऑक्साइड एक केमिकल है, जो कैंसर का कारण बनता है. इसका इस्तेमाल खाने को स्टरलाइज करने के लिए किया जाता है, लेकिन न्यूजीलैंड समेत कई देशों में इसका उपयोग बंद हो गया है. MDH और एवरेस्ट के मसाले न्यूजीलैंड में भी बिकते हैं, इसलिए हम इस मामले की जांच करने पर विचार कर रहे हैं.
वहीं, भारत की फूड सेफ्टी रेगुलेटर FSSAI ने पिछले महीने MDH और एवरेस्ट समेत सभी मसाला कंपनियों के उत्पादों के सैम्पल मांगे थे. इसके साथ ही FSSAI ने हॉन्गकॉन्ग और सिंगापुर से भी डिटेल मांगी हैं.
दुनियाभर में स्वाद बढ़ाते हैं भारतीय मसाले
ये मसाले ही थे, जिसकी खोज में 1498 में पुर्तगाल से वास्को डी गामा भारत आ पहुंचा था. आज भी दुनिया में मसालों का सबसे ज्यादा उत्पादन भारत में ही होता है. सिर्फ उत्पादन ही नहीं, बल्कि दुनिया में ज्यादातर मसाले भारत के ही होते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया में हर साल 12 फीसदी से ज्यादा मसालों का निर्यात अकेले भारत करता है. चीन, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका जैसे मुल्क भारतीय मसालों के बड़े खरीदार हैं.
लेकिन इस तरह के इल्जामों से भारत के मसाला कारोबार को नुकसान पहुंच सकता है. वो इसलिए भी क्योंकि MDH और एवरेस्ट दशकों पुरानी कंपनियां हैं और सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में इनका अच्छा-खासा मार्केट शेयर है.
हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब भारत के मसालों पर सवाल खड़े हुए हैं. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में एक बायोकेमिस्ट्री एक्सपर्ट इस्मिता मजूमदार ने बड़े ब्रांड्स के मिर्च पाउडर, जीरा पाउडर और गरम मसाला की जांच की थी. उन्होंने इन मसालों में सीसा के इस्तेमाल होने का दावा किया था. उनका कहना था कि इन मसालों में सीसा का इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि इन्हें गहरा नारंगी और सुर्ख लाल रंग दिया जा सके.
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) के एक प्रवक्ता ने बताया है कि 2021 के बाद से अब तक MDH के मसालों की 14 फीसदी से ज्यादा खेप को इसलिए लौटा दिया गया, क्योंकि इनमें बैक्टिरिया पाए गए थे.
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दोनों कितने बड़े ब्रांड?
MDH और एवरेस्ट, दोनों न सिर्फ भारत के सबसे बड़े मसाला ब्रांड हैं, बल्कि सबसे पुराने भी हैं. MDH यानी महाशियां दी हट्टी 107 साल तो एवरेस्ट 57 साल पुराना ब्रांड है.
MDH की शुरुआत 1919 में पाकिस्तान के सियालकोट की एक छोटी सी दुकान से हुई थी. इसे धरमपाल गुलाटी के पिता चुन्नी लाल ने शुरू किया था. आजादी के बाद MDH ने अपनी दुकान दिल्ली के करोल बाग में खोली. आज ये सिर्फ मसाला कंपनी ही नहीं रह गई, बल्कि 1500 करोड़ रुपये का साम्राज्य बन गई है, जो स्कूल और अस्पताल भी चलाती है. दुबई और लंदन में इसके ऑफिस हैं, जबकि 100 से ज्यादा देशों में MDH के मसाले निर्यात होते हैं.
वहीं, एवरेस्ट ब्रांड की शुरुआत 1967 में वादिलाल शाह ने की थी. साल 2005 तक भारत में एवरेस्ट का मार्केट शेयर 30 फीसदी तक था. लेकिन बाद में MDH का बाजार बढ़ने से इसका मार्केट शेयर घटता चला गया.
अनुमान है कि आज के समय में भारत में एवरेस्ट का मार्केट शेयर 13% और MDH का 12% है. यानी, दोनों कंपनियों का भारत के मसाला बाजार में 25 फीसदी हिस्सेदारी है. 2022 में MDH का रेवेन्यू 2,600 करोड़ और एवरेस्ट का 1,700 करोड़ रुपये से ज्यादा रहा था.
कैसे विवाद में फंसे दोनों ब्रांड?
MDH और एवरेस्ट के कुछ मसालों में एथिलीन ऑक्साइड कथित रूप से तय मात्रा से ज्यादा पाया गया है. इस कारण दुनियाभर के कई देशों ने इन दोनों ब्रांड्स के कई मसालों पर जांच बैठा दी है.
एथिलीन ऑक्साइड से कैंसर का खतरा होता है. हालांकि, कभी-कभार या कम मात्रा में इसका सेवन खतरनाक नहीं माना जाता. यही वजह है कि मसालों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.
हॉन्गकॉन्ग के सेंटर फॉर फूड सेफ्टी (सीएफएस) ने बताया था कि MDH और एवरेस्ट के कुछ मसालों में तय सीमा से ज्यादा एथिलीन ऑक्साइड पाया गया था, जो इंसानों के लिए सही नहीं है. इसी कारण सिंगापुर ने भी एवरेस्ट के फिश करी मसाला को लौटा दिया था.
न्यूज एजेंसी ANI को सरकार से जुड़े सूत्रों ने बताया है कि मसालों में एथिलीन ऑक्साइड की मात्रा कितनी होनी चाहिए, ये हर देश में अलग-अलग है. कुछ देशों में 0.3% तो कुछ में 7% तक एथिलीन ऑक्साइड को मिलाया जा सकता है.
वहीं, इन देशों के मसालों पर बैन लगाने से फिलहाल भारत के एक्सपोर्ट मार्केट पर कोई खतरा नजर नहीं आ रहा है. जिन देशों में मसालों पर बैन लगा है, उनमें भारत 1% से भी कम मसालों का निर्यात करता है.