Pulsed Plasma Rocket: मंगल तक जाने में लगेंगे सिर्फ 2 महीने, NASA का ये रॉकेट इंसानों को पहुंचाएगा ‘लाल ग्रह’

Pulsed Plasma Rocket: मंगल तक जाने में लगेंगे सिर्फ 2 महीने, NASA का ये रॉकेट इंसानों को पहुंचाएगा ‘लाल ग्रह’

NASA Mars Human Mission: नासा का नया रॉकेट सिस्टम ना सिर्फ इंसानों बल्कि कार्गो मिशन को भी तेजी से मंगल ग्रह पर भेजने के काबिल होगा. मौजूदा टेक्नोलॉजी के जरिए ‘लाल ग्रह’ का एक चक्कर लगाने में करीब 2 साल लगेंगे, लेकिन पल्स्ड प्लाज्मा रॉकेट (PPR) के जरिए सिर्फ 2 महीने में मंगल ग्रह तक पहुंचा जा सकता है.

Pulsed Plasma Rocket: मंगल तक जाने में लगेंगे सिर्फ 2 महीने, NASA का ये रॉकेट इंसानों को पहुंचाएगा 'लाल ग्रह'

पल्स्ड प्लाज्मा रॉकेट (PPR) से मंगल ग्रह तक जाने में लगेंगे सिर्फ 2 महीने.

Mars Human Mission: दुनिया भर की स्पेस एजेंसियां मंगल ग्रह पर जीवन की तलाश में जुटी हुई हैं. इनमें से कई एजेंसियां लाल ग्रह पर मानव मिशन भेजने पर भी काम कर रही हैं. नेशनल एयरोनॉटिक्स स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) का प्लान 2030 तक मंगल ग्रह पर इंसानों को भेजने का है. मंगल का एक चक्कर लगाने में दो साल लग सकते हैं, लेकिन नासा का नया रॉकेट सिस्टम महज 2 साल इंसानों को मंगल तक पहुंचा सकता है. इसके लिए नासा एक टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट कंपनी के साथ एक नई प्रोपल्शन सिस्टम पर काम कर रही है.

यह प्रोपल्शन सिस्टम लाल ग्रह तक पहुंचने के लिए जरूरी नौ महीने के सफर के बजाय दो महीने में मनुष्यों को मंगल ग्रह पर छोड़ सकता है. नासा के इनोवेटिव एडवांस्ड कॉन्सेप्ट्स (NIAC) प्रोग्राम ने हाल ही में एडिशनल फंडिंग और डेवलपमेंट के लिए छह अहम प्रोजेक्ट्स का सेलेक्शन किया, जिससे इस प्रोजेक्ट को दूसरे फेज में आने की अनुमति मिली.

नासा में NIAC प्रोग्राम के एक्जीक्यूटिव जॉन नेल्सन ने जिस नए “साइंटिफिक फिक्शन जैसे कॉन्सेप्ट्स” का जिक्र किया उसमें एक लूनर रेलवे सिस्टम, फ्लूड -बेस्ड टेलीस्कोप और एक पल्स्ड प्लाज्मा रॉकेट शामिल हैं.

पल्स्ड प्रोपल्शन रॉकेट सिस्टम (PPR)

अमेरिका के रिजोना स्थित होवे इंडस्ट्रीज पल्स्ड प्रोपल्शन रॉकेट सिस्टम (PPR) को बना रही है. कम समय में हाई वेलोसिटी तक पहुंचने के लिए पल्स्ड प्लाज्मा रॉकेट न्यूक्लियर फिजन का इस्तेमाल करेगा. एटम के अलग होने से एनर्जी निकलेगी और थ्रस्ट यानी जोर पैदा करने के लिए प्लाज्मा के पैकेट बनेंगे.

Pulsed Plasma Rocket Nasa

पल्स्ड प्लाज्मा रॉकेट न्यूक्लियर फिजन का इस्तेमाल करता है. (Howe Industries)

यह स्पेस में रॉकेट को आगे बढ़ाने में मदद करने के लिए प्लाज्मा का कंट्रोल्ड जेट तैयार करेगा. नया प्रोपल्शन सिस्टम और थ्रस्ट के साथ रॉकेट संभावित तौर पर हाई फ्यूल एफिशिएंसी के लिए 5,000 सेकंड के इंपल्स (आईएसपी) के साथ 22,481 पाउंड फोर्स (100,000 न्यूटन) तक पैदा कर सकता है.

छोटा और सस्ता है पल्स्ड प्लाज्मा रॉकेट

यह एकदम नया कॉन्सेप्ट नहीं है. नासा ने 2018 में पल्स्ड फिशन-फ्यूजन (PuFF) नाम से अपना खुदा का डेवलप करना शुरू किया. PuFF थ्रस्ट पैदा करने के लिए आमतौर पर लैबोरेटरी प्लाज्मा को बहुत कम समय के लिए हाई प्रेशऱ में कंप्रेस करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले डिवाइस पर निर्भर करता है, जिसे जेड-पिंच कहा जाता है. हालांकि, नासा के अनुसार पल्स्ड प्लाज्मा रॉकेट छोटा, आसान और ज्यादा किफायती है.

Pulsed Plasma Rocket

पल्स्ड प्लाज्मा रॉकेट एक छोटा और किफायती ऑप्शन है. (Howe Industries)

स्पेस एजेंसी का दावा है कि प्रोपल्शन सिस्टम की हाई एफिशिएंसी मंगल ग्रह पर क्रू के मिशन को दो महीने में पूरा करने में मदद कर सकती है. मौजूदा समय में इस्तेमाल होने वाले प्रोपल्शन सिस्टम्स आमतौर पर नौ महीने में मंगल का सफर पूरा कर सकते हैं. इंसान स्पेस के सफर में जितना कम समय बिताएगा उतना बेहतर होगा. इससे स्पेस रेडिएशन और माइक्रोग्रैविटी के संपर्क में आने की अवधि कम होगी, और मानव शरीर पर इसके प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी.

पल्स्ड प्लाज्मा रॉकेट बहुत भारी स्पेसक्रॉफ्ट ले जाने में भी सक्षम होगा, जिसे बाद में बोर्ड पर क्रू के लिए गैलेक्टिक कॉस्मिक रेज के खिलाफ ढाल को भी जोड़ा जा सकता है.

Pulsed Plasma Rocket Shielding

गैलेक्टिक कॉस्मिक रेज के लिए ढाल का इस्तेमाल. (Howe Industries)

NIAC फेज 2 की ओर बढ़ा PPR

नासा के अनुसार, NIAC का फेज 2 सिस्टम के न्यूट्रॉनिक्स (स्पेसक्रॉफ्ट की स्पीड प्लाज्मा के साथ कैसे इंटरैक्ट करती है) का आकलन करने, स्पेसक्रॉफ्ट, पावर सिस्टम और जरूरी सब-सिस्टम्स को डिजाइन करने, मैग्नेटिक नोजल कैपेबिलिटी का एनालिसिस करने और ट्रेजेक्टरी और पल्स्ड प्लाज्मा रॉकेट के फायदों पर फोकस है.

नए प्रोपल्शन सिस्टम में क्रू की स्पेसफ्लाइट में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता है, जिससे इंसानों को बिना किसी मुश्किल सफर के मंगल ग्रह तक पहुंचने में मदद मिलेगी.

PPR के लिए हाई थ्रस्ट और हाई Isp क्यों जरूरी?

  • पृथ्वी पर स्पेस कम्यूनिटी की सोच स्पेस एक्सप्लोरेशन से हटकर स्पेस डेवलपमेंट की तरफ शिफ्ट हो रही है.
  • स्पेस डेवलपमेंट के लिए ऐसे प्रोपल्शन की जरूरत है जो बड़े पेलोड को पूरे सोलर सिस्टम में तेजी से ले जा सके – निश्चित तौर पर चांद और मंगल ग्रह तक.
  • पिछले 50 सालों में विकसित ज्यादा प्रोपल्शन सिस्टम या तो हाई थ्रस्ट या हाई इंपल्स (Isp) हैं, लेकिन कभी दोनों नहीं रही.
  • 100,000 N थ्रस्ट और 5000 सेकेंड के इंपल्स (Isp) वाले सिस्टम को 2.5 गीगावाट से ज्यादा बिजली सोर्स की जरूरत होती है. अगर EP, तो लगभग 10 गीगावाट थर्मल हीट को रेडिएट करना होगा, जो अब तक के किसी भी सिस्टम से कहीं ज्यादा है.
  • पल्स्ड पावर जेनरेशन हाई उच्च Isp और हाई थ्रस्ट पैदा करने देता है. क्योंकि सिस्टम थर्मोडायनामिक बैलेंस में नहीं होता, इसलिए हीट रिजेक्शन पूरा हो सकता है.

Pulsed Plasma Rocket System

PPR हाई थ्रस्ट और हाई इंपल्स (Isp) पैदा करता है. (Howe Industries)

PPR से स्पेस में माइनिंग और डेवलपमेंट

पल्स्ड प्रोपल्शन सिस्टम (PPR) मंगल पर ना केवल इंसान बल्कि कार्गो ट्रांसपोर्ट में भी तेजी लाने में मदद कर सकता है. इसके अलावा टेक्नोलॉजी माइनिंग और समूचे सोलर सिस्टम के डेवलपमेंट के लिए एस्टेरॉयड बेल्ट का रास्ता खोलती है. नासा के सिंगल स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) के जरिए पल्स्ड प्रोपल्शन सिस्टम (PPR) इंसानों को 2 महीने में मंगल पर भेज देगा.

मंगल ग्रह के लिए एस्ट्रोनॉट्स को तैयार कर रही नासा

नासा ने ह्यूस्टन में एजेंसी के जॉनसन स्पेस सेंटर में मंगल ग्रह के सिम्युलेटेड मिशन के लिए चार वालंटियर्स के एक नए क्रू का चयन किया है. यह एक तरह का नकली मंगल मिशन है, जिसके तहत स्पेस सेंटर में मंगल ग्रह का माहौल तैयार किया गया है. मंगल जैसे वातावरण में ये चारों वालंटियर्स रहेंगे. जेसन ली, स्टेफनी नवारो, शरीफ अल रोमाथी, और पियुमी विजेसेकरा ने शुक्रवार, 10 मई को एजेंसी के ह्यूमन एक्सप्लोरेशन रिसर्च एनालॉग या HERA में कदम रखा.

एक बार अंदर जाने के बाद क्रू 45 दिनों तक स्पेस यात्रियों की तरह रहेगा और काम करेगा. पृथ्वी पर “वापस” आने के बाद क्रू 24 जून को इस मिशन से बाहर निकल जाएगा. जोस बाका और ब्रैंडन केंट इस मिशन के वैकल्पिक क्रू मेंबर्स हैं.

HERA साइंटिस्ट्स को इस बात की स्टडी करने के काबिल बनाता है कि नासा के चंद्रमा, मंगल और उससे आगे के डीप स्पेस मिशनों पर स्पेस यात्रियों को भेजने से पहले क्रू के सदस्य अलगाव, कैद और दूर की कंडीशन में खुद को कैसे ढालते हैं.

क्रू के सदस्य लाल ग्रह पर अपने सिम्युलेटेड मिशन के दौरान साइंटिफिक रिसर्च और ऑपरेशनल काम को अंजाम देंगे, जिसमें वर्चुअल रिएलिटी का करके मंगल की सतह पर “चलना” भी शामिल है. जैसे-जैसे वे मंगल के “नजदीक” होंगे, उन्हें मिशन कंट्रोल सेंटर के साथ बातचीत में हर तरफ पांच मिनट तक बढ़ती देरी का अहसास होगा.

 

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